Saturday 29 March 2014

Now "ya Modi sarvbhuteshu, rashtra roopena sansthitaa" RSS/BJP cadres postering this slogan at Varanasi. It means once they desperately ransacked our composite culture by demolishing Babri Mosque/Ram Temple on the bank of River Saryu now they r trying to smashed Hindu religious values and sentiments on the bank of holy Ganga. If EC fails to control attack on our faith Hindu anger will erupt like volcano at any time. Time has come to intervene in such activities by intellect people.



विलीन होती ग्रामीण सभ्यता
जैसा की हम सभी जानते है की तेजी से बढती हुई इस आधुनिकता में  बहुत सी चीजे विलीन होती जा रही है | आधुनिकीकरण का प्रभाव इस कदर लोगो पर पड़ रहा है की हर कार्य को वे तेजी से पूरा कर लेना चाहते है | लोगो के पास वक़्त की कमी है | विज्ञान और प्रोद्योगिकी ने दुनिया का नक्शा ही बदल डाला है | आज हमे हज़ारों किलोमीटर की दूरी, दूरी नहीं लगती है | आज के इस युग में हर वक़्त कुछ नया हो रहा है | हमारा देश भारत भी तेजी से इस प्रतिस्पर्धा में बढ़ रहा है | भारत के कई नगरो को विश्व में जाना जाने लगा है |
मगर भारत एक कृषि प्रधान देश है, और कृषि से प्राप्त आय भारत के सकल घरेलु उत्पाद का एक बहुत बड़ा हिस्सा है | परन्तु प्रश्न यह उठता है की हमारे नगर तो आधुनिक हो रहे है, पर हमारे ग्राम क्यों पिछड़ते जा रहे है | ग्राम जो की कृषि के लिए जाने जाते है | हमारे अन्नदाता यही बसते है | ग्राम का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क में पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, और तालाब-जलाशयों आदि का चित्र उभर आता है| परन्तु इनका नाम सुनते ही एक और चित्र भी उभरता है, वह है , गन्दगी, प्रदुषण, आसमाजिकता, ख़राब रास्ते, कचरे का ढेर आदि | इसी अव्यवस्था के कारण ग्राम के लोग नगरों की और पलायन करने लगे है |जिसके कारण नगरों में जनसँख्या का घनत्व तेजी से बढ़ रहा है , लोग फूटपाथ पर सोने को मजबूर है, जबकि एक कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के ग्रामों को नगरों से भी आधुनिक होना चाहिये, परन्तु स्थिति इसके ठीक विपरीत है | आज ग्रामो में ग़रीबी , बेरोजगारी बढती जा रही है , यहाँ के लोग सभ्य समाज की कामना ही नहीं कर पा रहे है , जिसका सीधा दोष सरकार पर जाता है | सरकार इन जगहों पर ध्यान ही नहीं देती है , जब चुनाव का वक़्त आता है तो राजनेता वोट के खातिर इन गॉवो में घूमना शुरू कर देते है | क्योंकि राजनितिक पार्टियों के ज्यादातर वोट-बैंक ग्रामों में ही मौजूद है | यहाँ चुनाव के वक़्त नेतागण जनता को प्रोलोभन देते है , ताकि वे उन्हें वोट देकर सत्ता में ले आये ,  और जनता को जाती-धर्म आदि के आधार पर बाट देते है | ग्राम की जनता की आवाज़ सुनने के लिए ग्राम पंचायतो और ग्राम सभाओं को वृहद् स्तर पर बढाया गया है | परंतु इन सभाओं और पंचायतों से ग्राम की जनता को क्षणिक लाभ ही मिल पाया है | क्योंकि ग्रामों में ज्यादातर लोग निरक्षर होते है , जिसका फायदा पढ़े लिखे महाजन उठाते है | वे अपने रौब और बहुबल के दम पर पंचायती या प्रधानी चुनावों में अपनी जीत पक्की करवा लेते है , और सरकार द्वारा दी गयी धनराशी को अपनी जेब में रख लेते है | निरक्षरता के कारण यहाँ की जनता बाहुबलियों के खिलाफ़ आवाज़ भी नहीं उठा पाती है और उन्हें किसी चीज़ की जानकारी भी नहीं होती है | और कुछ साक्षर लोग जब इस आराजकता का विरोध करते है तो उन्हें या तो रुपये देकर चुप करा दिया जाता है या डरा-धमका कर शांत कर दिया जाता है | इस प्रकार सरकार द्वारा ग्रामों के विकास के लिए तो कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते है , परन्तु वे सुचारू रूप से चल नहीं पाते है | इन कार्यक्रमों में दी जाने वाली राशि आधिकारी और नेतागण गमन कर जाते है | छोटे कस्बो में नगरपालिकाये बनायीं जाती है , ताकि वे कस्बों की साफ़-सफ़ाई पर ध्यान दे सके , परन्तु नगरपलिकाओ का कोई भी आधिकारी या कर्मचारी ध्यान नहीं देता है |  शिकायत करने पर प्रशासन कुछ दिन के लिए हरक़त में आता है, परन्तु फिर बाद में वही हालात वापस आ जाते है | कृषि प्रधान देश होने के नाते अगर भारत के ग्राम ही स्वच्छ और सुन्दर नहीं रहेंगे तो विश्व में देश का क्या प्रभाव पड़ेगा | नगरों के चिकत्शालायो में ज्यादातर ग्रामीण लोग ही भर्ती होते है | इसका एक मात्र कारण यही है की ग्राम में गंदे पानी की निकास की व्यवस्था न होना , कचरों का ढेर , मृत पशुओं का खुले में पड़े रहना , खुले में शौच जाना आदि | जिससे अनेक प्रकार के संक्रामक रोग फैलते है , जिससे ग्राम की जनता ही प्रभावित होती है | निरक्षर होने के कारण जनता भी इन विषयो पर ध्यान नहीं देती है जिससे प्रदूषण को और बढ़ावा मिलता है | कुछ रुढ़िवादी मानसिकता वाले लोग ग्राम समाज के विकास में भी बाधक बनते है , और ईश्वर के नाम पर लोगो को डरा-धमका के रखते है | इस प्रकार अगर ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन ग्रामीण सभ्यता का अंत हो जायगा , जिसकी शुरुवात लगभग हो चुकी है | हम अपनी सभ्यता को भूलते जा रहे है , भारत जिसकी विश्व में पहचान ही सभ्यता और संस्कृति के कारण है वो अब विलीन होती जा रही है | हमारी लोक संस्कृति , शिक्षा जो की ग्रामीण सभ्यता की देन है आज विलुप्ति की कगार पर है | हमारे ग्राम ही देश की बुनियाद है , अगर यही नष्ट हो गए , तो हमारा देश कैसे विकास करेगा ?                                          
                                           
                                              दीपंकर शर्मा 

Monday 24 March 2014



भक्ति के नाम पे अराजकता क्यों ?
जैसा की आप सभी जानते है की शिवरात्रि आने वाली है , इस बात का पता तो आपको सड़को पर से गुजरते कावेरियो के झुण्ड से ही पता चल गया होगा | अब कवेरिये कौन है ये जानना भी जरुरी है, क्यूंकि तेजी से बढ़ती हुई आधुनिकता में हम इनको भी भूलते जा रहे है |
कवेरिये शिव भक्त होते है , जो हर शिवरात्रि पर शिव के प्रख्यात मंदिरों में पुजा अर्चना के लिए पहुचते है | ये अपनी मान्यताओ के अनुसार हजारो की संख्या में अपने घरो से पैदल ही शिव की बारात में शामिल होने ले लिए पहुचते है | ये शिव के परम भक्त माने जाते है |
इस बात में तो कोई शक नहीं है की ये परम शिव भक्त है और वो शिव को प्रसन्न करने के लिए कोई कसर भी नहीं छोड़ते है | पर क्या शिव तभी प्रसन्न होते है जब हम अपनी मानवीयता को भुला के भक्ति करे , हम भक्ति के नाम पे अराजकता फैलाये, क्या तभी शिव की पूजा सफल होती है |
प्रायः देखा जाता है की जब कावेरिये सड़को पर से झुण्ड बनाते हुए गुजरते है तो वे रह चलती जनता को काफी परेशान करते है , अक्सर कुछ कावेरिये सड़को पर लड़कियों से अभद्रता करते हुए भी नज़र आते है | अगर कोई इनका विरोध भी करता है तो वे संख्या में अधिक होने का लाभ उठा कर लड़ाई-झगड़े पे उतर आते है , जिसके कारण जनता अक्सर कावेरियो द्वारा की गई छेड़खानी और उपद्रव को नजरअंदाज करती है , पोलिस महकमा भी इन्हें शिव भक्त बता कर इनसे पलड़ा झाड़ लेती है |
कुछ नए–नविले शिव भक्तो का भी उत्साह इनको देख कर बढ़ जाता है और वे राजनीति में अपने पैर जमानें के लिए इनकी मदद के नाम पर इन्हें और छुट प्रादान करते है ,जिसके कारण इनकी उद्दंता  चरम सीमा पर पहुच जाती है ,ये भक्ति छोड़ कर आराजकता पर उतर आते है , रात में यात्रा करते वक़्त ये आने जाने वाले यात्रियों से लूट-पाट भी करते है,यही नहीं जब ये अपने गाओ से निकलते है तो धर्म के नाम पर डरा करके मासूम गाववालो से जबरन वसूली करते ह,और उन पैसो से ये जुवा खेलते है , और गांजा , शराब आदि को शिव का प्रसाद बता कर पीते है | सड़को पर चलते वक़्त ये  शोर मचाते हुए चलते है और आने-जाने वाली गाडियों का रास्ता रोक लेते है जिससे सड़क-जाम की बड़ी समस्या उत्पन्न होती है |
दरअसल देखा जाये तो ये शिव भक्त गाओ के बेरोजगार नवजवान होते है , जिनके पास करने के लिए कुछ काम नहीं होता है , और पैसा कमाने के लालच में ये शिव भक्ती का चोला ओढ़ कर असमाजीक कार्य करते है , कानूनी प्रक्रिया ढीली होने के कारण और राजनेताओ का श्रय मिल जाने के कारण इनके हौसले और बुलंद हो जाते है और उसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है |
हम हमेशा भक्ति में इतने अंधे हो जाते है की हमे समाज में रह रहे अन्य लोगो की परवाह नहीं रह जाती है और उसका परिणाम बहुत बुरा होता है | इसका प्रभाव खाली रह चलती जनता पर ही नहीं पड़ता है , बल्कि कावेरिये भी परेशान होते है , कुछ लोग इनसे बदला लेने के चक्कर में कम संख्या वाले झुंडो को अपना निशाना बनाते है और हत्याय तक कर देते है जिससे अफरा-तफरी का माहोल बन जाता है|
सरकार भी इन शिव भक्तो के ऊपर ध्यान नहीं देती है , इनके रास्ते में चलने के लिए हर साल तमाम तरह की सुविधाये देने का वायदा किया जाता है ,पर सुविधाये कावेरियो तक पहुच ही नहीं पाती है , जिससे इनमे आक्रोश की भावना भरी रहती है | कई बार रास्ते चलते कावेरियो पर बस और ट्रके चढ़ जाती है , जिससे इनकी मौत हो जाती है , और इन हादसों का बदला लेने के लिये ये राह चलती जनता को परेशान करते है | और भक्ति के नाम पे अराजकता फैलाते है |
भक्ति का अर्थ ये नहीं होता है की हम अपने आस पास के लोगो को परेशान करे की तभी जा के हमारी भक्ति का पता शिव को चलेगा , भक्ति मन से और शांति से की जानी चाहिए ताकि आस पास के लोग इससे शोर-शराबा समझ कर दूर न भागे | किसी भी भक्त की भक्ति तभी सफल हो सकती है जब वह दुसरो को बिना तकलीफ पहुचाये भक्ति करे, तभी शिव प्रसन्न होंगे |
                                                         

                                                           दीपंकर शर्मा
                                                          एम0जे0एम0सी
                                                       लखनऊ विश्वविद्यालय